अकेले में जब निकल पड़ता
अकेले में जब निकल पड़ता,
हर चीज में जीवन की झलक पाता।
जीवन के सभी रंगों को देखता जाता,
हर जीव को देख, भावनाओं को समझने की चाहत जगाता।
कुछ पल उनके साथ बिताने की आस लिए,
आँखों से आँखें मिलाकर, जीवन की कहानियाँ पढ़ने की चाहत लिए।
बातें कर, उनसे जीवन के सबक सीखने की चाहत लिए,
अकेले में जब निकल पड़ता।
इतनी भावनाओं के बीच, मन विचारों में डूब जाता,
जीवन के इतने रंग कहाँ से आते, सोचता।
भूखे पेट कोई कैसे सो जाता,
बिना माँ-बाप का बच्चा किसे पुकारता।
मासूम पिल्ला क्यों कभी गाड़ी के नीचे आ जाता,
माँ को आश्रम में छोड़, बेटा कैसे चैन से सो पाता।
अकेले में जब निकल पड़ता।
कुछ जीवन ऐसे होते हैं, जो साहस से भर देते,
फिर अपनी परेशानियों को कितना छोटा पाते।
कुछ जीवन ऐसे भी होते हैं, जो दुखी कर देते,
हाथ मदद का बढ़ाकर, दर्द कम करने की कोशिश करते।
कभी न कर पाने की असमर्थता में, बेबस से हो जाते,
सब भागदौड़ के बीच, जीवन को उलझा पाते।
फिर जाने क्या सोच, मैं भी भागदौड़ में शामिल हो जाता,
अकेले में जब निकल पड़ता।
आँखों तक दर्द न आने देने की सोच से घबराता,
अगर होता मेरे बस में, हर दर्द बाँटता जाता।
काश ऐसा हो पाता कि हर दिल को जोड़ पाता,
उदासी के हर चेहरे पर मुस्कान बिखेरता जाता।
हर दुखी मन के आँसू पोंछता, दिलासा देता जाता,
अकेले में जब निकल पड़ता।